Saturday, 20 October 2018

 संघर्ष

 

जितने रोड़े डाल सके तू डाल दे मुकद्दर।
संघर्ष की अग्नि में ही उत्थानते सिकंदर॥

 

विजयश्री की मोहिनी भी आजीवन असफल रही।
कर्म है धर्म, फल नहीं, हुंकारते धुरंधर॥

 

हाथ उनका वासुकि सा वक्त पर लिपटा रहा।
फल स्वरुप अमृत को भी धिक्कारते बिलंदर॥

 

उन्नति परिणाम है।
विश्वरूपी श्याम है।
निरंतर श्रम-सैनिकों के।
घर में चारो धाम है॥


आलिंगन कर इस भाव को।
इस में ही अभिराम है।
कलियुग को सतयुग सा करदे।
भागवद का पैगाम है॥


कंचन निखरे या न निखरे।
आग नहीं नाकाम है।
सफल नहीं था कर्ण पर उसको।
दुनिया का सलाम है॥


वैष्णवतार प्रभु राम का जन्म।
अविच्छिन्न संग्राम है।
जीवन भर संघर्ष किया तब। 
मुँह पे सबके राम है॥
 

-Rj                             


Friday, 17 July 2015

भिखारी

अल्प न्यूनतम ज़रूरतें पर,
पूर्ण जगत का मैं अधिकारी |
उनकी क्या औकात है प्यारे
जो कहते है मुझे भिखारी ||

प्यारे, तू तो बँधा है यहाँ,
किसीका नौकर, दफ़्तरधारी |
आसमानी छत भूषित, साधा,
मेरा दफ़्तर, दुनियादारी ||

मेरे दफ़्तर आते हो जब,
हसते हैं हम सब सहकारी |
तेरे दफ़्तर जाने वाला! अरेरे!
क्या होगी उसकी लाचारी ||

उपर से सौंदर्य रहित हूँ,
करीब-करीब निर्वस्त्र है स्वारी |
गंध से तो चूहे शरमाएँ,
अस्वच्छता मानव रूप धारी |
पर इस का द्वेष नही है क्यूंकी
तुझसा मन ना है अहंकारी |
मुझे देख तिरस्कार दिखाता?
चोर है फिर कोतवाल पे भारी !
 
जिस पथ से तू रोज़ गुज़रता,
वक़्त से करते भागादौड़ी |
वही सड़क तो घर है मेरा,
वहीं लगाता हूँ मैं गाड़ी |
धंधे का एक मर्म है मेरा,
मेरी निराशा हो तुझपे भारी |
भावनाओं के खुले बज़ार में,
मैं करुणा का व्यापारी ||


एक लकीर का अंतर हम में
फिर क्यूँ रखता है यह दूरी ?
बड़े हृदय का धनी हूँ, प्यारे,
आजा, कैसी है मजबूरी ?

देख के मुझको दर्द में डूबा,
तेरा मन हो चुका है भारी |
किसी तरह मेरी तकलीफें,
हल करने की करे तैयारी ||
तेरा पैसा फेकेगा फिर,
दया का सागर, तू उपकारी |
पर, तू क्या जाने, ठग चुका तुझे,
ग़रीब, बिचारा यह भिखारी ||

-Rj                      

Friday, 29 May 2015

Well, This is weird.
An old friend of mine and I were chatting after a long time.

And this conversation happened.

They don't contain our best "SHERS" but, I like it coz it was instantaneous...
Love you UZI...







Tuesday, 26 May 2015

दुनिया के इस पार आया हूँ...



घर मेरा मैं छोड़ आया हूँ,
मैं कितने बंधन तोड़ आया हूँ
जो तप्ति-धूप को ढँक लेता था
वो माँ का आँचल छोड़ आया हूँ…

सात समंदर बीच खड़े हैं…
हिम-पर्वत मालाए है…
“दुनिया देखूं” - ज़िद में था मैं…
अपनी दुनिया छोड़ आया हूँ..

कभी ना देखे फूल है यहाँ..
चंचल नदियों के खेल है यहाँ…
निसर्ग का वरदान है फिर भी
गंगाजल तो छोड़ आया हू…

इस देश की तारीफ क्या करूँ,
दरिया में बरसात क्या करूँ…
सपनो की दुनिया है, इस में
अपनो के सपने लाया हूँ...
                                                 -Rj

Friday, 19 December 2014

तब तुम होना पास...




बिन बादल आसमां
जितना तन्हा होता है। तुम बिन कटा हर एक 
हमारा लम्हा होता है। लेहराते बादलो के साथ उमड़ती
क्यू नहीं आ जाती। चलेंगे हाथो-में-हाथ, मधुमती,
क्यू नहीं आ जाती। इतराके आखिर सागर में 
गंगा मिल ही जाती है। तुम इस जन्म मेरी गंगा 
क्यू नहीं हो जाती। सूरज के तेज को भी चाँद की
रोशनी में बदलना होता है। मेरे दिल से टकराकर, मुझमें, क्यू नहीं खो जाती। तेरी आस। 
तेरी ही प्यास। बिन तेरी मिठास। 
मेरा जीवन उदास। एक ही बची है 
ख्वाइश ये खास। दम तॉडूंगा जब,

तब तुम होना पास।
तब तुम होना पास...
-Rj

Tuesday, 9 December 2014

तुझसे आँखें फेर लेता हूँ...

दिख गया तुझको         
               तोह आँखें फेर लेता हूँ |
बस एक उस पल से       
          मुहब्बत हेर लेता हूँ |
जब कभी पर पड गया      
                 इकरार के चक्कर में मैं | 
क्यूं ना जाने सब पे         
          पानी फेर देता हूँ |

                                            -Rj

Tuesday, 18 February 2014

 

Trinkets


Preface:- Trinkets are the small ornaments/pieces of jewellery, that we give undue importance over ourselves. We think they have some magical power in them to make us successful and when we lose them we get distressed. A lucky charm is an example of such a trinket. This happened with a dear friend of mine, from which incident I ended up writing this...

 

Some people I almost feared,
Gave me a trinket I most revered.
The trinket caused, what I conquered,
That otherwise, I'd had squandered.

The token had a ruby studded,
My confidence, I knew, was flooded.
It gave me that extra bit of zeal,
Which, devoid of it, I could seldom feel.

To where I went and back from it,
I took the piece to every treat.
And as did my "Guided" ventures exhaust,
I found one day that the trinket was lost!

Lost wasn't just the souvenir I had,
Gone was the shelter, my soul used to clad.
I felt desolate, devastated, in grief,
I knew this dismay wasn't ‘gonna’ be brief.

I was at my nadir this time,
After pulses and peaks of regaling times.
I gave away to the fate, contrite,
Nothing was lucid, no hope, no light.


I didn't realized all the success was mine.
That a scarlet rock with it's glittery shine,
couldn't have propelled me towards my prime. 
Did not deserve credit for my golden time.

Lot's of things conspired my progress,
Family and Friends, I'm lucky to possess,
Definitely my resolute, persevering toil,
And, finally, God who didn't let me spoil.

At this point, I leave the conclusion to thee,
To those who are normal, as normal as me.
But those who regard such trinkets over themselves,
I am sure you hurt all. Including yourselves.
                                                                         -Rj