Tuesday, 26 May 2015

दुनिया के इस पार आया हूँ...



घर मेरा मैं छोड़ आया हूँ,
मैं कितने बंधन तोड़ आया हूँ
जो तप्ति-धूप को ढँक लेता था
वो माँ का आँचल छोड़ आया हूँ…

सात समंदर बीच खड़े हैं…
हिम-पर्वत मालाए है…
“दुनिया देखूं” - ज़िद में था मैं…
अपनी दुनिया छोड़ आया हूँ..

कभी ना देखे फूल है यहाँ..
चंचल नदियों के खेल है यहाँ…
निसर्ग का वरदान है फिर भी
गंगाजल तो छोड़ आया हू…

इस देश की तारीफ क्या करूँ,
दरिया में बरसात क्या करूँ…
सपनो की दुनिया है, इस में
अपनो के सपने लाया हूँ...
                                                 -Rj

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